देहरादून ( जतिन शर्मा )
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आइसलैंड की घरती से पिघलते ग्लेशियरों पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि ग्लेशियरों का पीछे खिसकना मानवता के लिये खतरा है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमने गंगा जी के तटों को करीब से देखा हैं।
गोमुख, गंगोत्री से गंगा सागर तक की यात्रा की तब लगा कि अब जहां-जहां ग्लेशियर है वहां की भी यात्रा होनी चाहिये।
गंगा से ग्लेशियर और गोमुख से ग्रीनलैंड व आइसलैंड की यह यात्रा जल संरक्षण को समर्पित है।
स्वामी ने कहा कि पूरे विश्व में जल की कमी हो रही है, जल प्रदूषित हो रहा है और जो ग्लेशियर के रूप में हैं वह भी हर क्षण पिघल रहा हैं ।
“ग्लेशियर टूटा तो पर्यावरण रूठा , जल है तो जीवन है”
हर क्षण ग्लेशियर के आकार में परिवर्तन हो रहा हैं। ग्लेशियर पिघल-पिघल कर इतनी तीव्रता से टूट रहा है जिसके कारण मेरा हृदय भी द्रवित हो रहा है क्योंकि ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिग के कारण पिघल रहे हैं इसलिये अब जरूरत है की हम प्लास्टिक का उपयोग कम करें, जल के प्रति जागे और मिलकर कार्य करें।
भारत में ग्लेशियर 6.7, माइनस 3 मीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से पीछे खिसक रहे है। हवा के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होने के कारण बर्फ पिघलने में तेजी आ रही है।
ग्लोबल वार्मिग और क्लाइमेंट चेंज के कारण कई बार गर्मियों में ऊँचाई वाले स्थानों पर बर्फबारी की जगह बारिश होने लगती है, जिससे सर्दी-गर्मी का मौसमी पैटर्न भी प्रभावित हो रहा है।
ग्लेशियरों के तीव्र गति से पिघलने से मानव जीवन भी प्रभावित हो रहा है। यह मृदा अपरदन, भूस्खलन और बाढ़ के कारण मिट्टी के नुकसान सहित जल, भोजन, ऊर्जा सुरक्षा एवं कृषि को भी प्रभावित कर रहा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2100 तक एशियाई हिमनदों में तकरीबन एक तिहाई की कमी हो सकती है जिससे पीने का पानी, सिंचाई तथा जल विद्युत परियोजनाएँ सबसे अधिक प्रभावित होगी।
ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियरों में असंतुलन की स्थिति बन गई है। एशिया में एक अरब से ज्यादा लोग गंगा, यांग्त्जी और मेकांग आदि नदियों पर निर्भर हैं और इन नदियों में जल का मुख्य स्रोत हिमालय के ग्लेशियर है। शोधकर्ताओं के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग में प्रत्येक डिग्री की कमी एशियाई ग्लेशियरों की 7 प्रतिशत बर्फ को पिघलने से बचा सकती है।
स्वामी ने कहा कि नदियां सबकी हैं, गंगा सबकी है इसलिये हमें जल के प्रति चेतना होगा; जागना होगा ताकि जल जागरण-जन जागरण बनें। जल चेतना-जन चेतना बनें। जल क्रान्ति-जन क्रान्ति बनें और जल अभियान-जन अभियान बनें।
“ग्लेशियरों का पीछे खिसकना मानवता के लिये खतरा””
ग्लेशियरों के पिघलने की घटना वैश्विक स्तर पर खतरे का संकेत है। अतः जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये हमें अपनी प्रतिबद्धताओं को न केवल बढ़ाने और मजबूत करने की आवश्यकता है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन ग्लेशियरों को संरक्षित करने के प्रयासों को भी बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है।